गुलालों की होली से मुस्लिम महिलाओं ने दिया एकता का पैगाम

हवाओं में गुलाब की पंखुड़ियां और उड़ते गुलाल ने खुशियां बिखेरी

• सभी भेदभाव से मुक्ति का संदेश छुपा है होली में।
• हमारे खून में शामिल है पूर्वजों की होली का रंग – नाजनीन अंसारी।
• नफरत से होती है खून की होली और मोहब्बत से रंगों की होली खेली जाती है।

वाराणसी। धर्म के नाम पर नफरत फैलाकर खून की होली खेलने वालों को काशी की मुस्लिम महिलाओं ने सुभाष भवन में गुलालों और फूलों की होली खेलकर मोहब्बत का पैगाम पूरी दुनियां को भेजा। यूं ही नहीं काशी की होली प्रसिद्ध है। यहां बाबा विश्वनाथ भस्म से होली खेलते है, तो मुस्लिम महिलाएं गुलाल उड़ाकर हिन्दू महिलाओं के चेहरे को रंग देती हैं। गुलाल हवा में जब उड़ता है तो सबके चेहरे रंगीन हो जाते हैं और सबके दिल मिल जाते हैं।

विशाल भारत संस्थान एवं मुस्लिम महिला फाउण्डेशन के संयुक्त तत्वावधान में मुस्लिम महिलाओं की गुलालों वाली होली कार्यक्रम लमही के सुभाष भवन में आयोजित किया गया। ढोल की थाप पर फगुआ गाती मुस्लिम महिलाएं हवा में गुलाल उड़ाकर फिजाओं को रंगीन बना रही थीं। मोहब्बत और समरसता का इससे बड़ा नजारा क्या होगा जहां गुलाब की पंखुड़ियों को एक दूसरे पर फेंककर हंसी ठिठोली कर होली का त्योहार मनाया जा रहा हो। देश को बांटने वाले और आतंकियों को मुस्लिम महिलाओं ने करारा जबाव दिया कि उनके कहने पर कोई अलग होने वाला नहीं। होली का त्योहार मोहब्बत और एकता का त्योहार है। यह किसी भेद को नहीं मानता। भारतीयों के लिए यह त्योहार सम्बन्धों में अमृत की तरह है। धर्म के ठेकेदार भारतीय त्योहारों को धर्म में न बांटे।

चेहरों पर गुलाल और एक दूसरे के मुंह में लड्डू खिलाती महिलाएं खूबसूरत भारत की तस्वीर पेश कर रही थीं। पूरा सुभाष भवन होली मय हो गया। मुस्लिम महिलाओं ने सुभाष मन्दिर में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा पर गुलाल लगाया और मोदी की तस्वीर पर गुलाल लगाकर होली खेला।

इस अवसर पर मुस्लिम महिला फाउण्डेशन की नेशनल सदर नाजनीन अंसारी ने कहा कि हमने मजहब बदल लिया लेकिन संस्कृति नहीं बदली और न ही पूर्वज बदले। हमारे खून में शामिल है पूर्वजों के होली का रंग। जब ईद में हिन्दू भाई गले मिलते हैं और रोजा इफ्तार करवाते हैं, तो मुसलमानों को भी होली मिलन समारोह का आयोजन करना चाहिए। जो मौलाना कहते हैं कि रंग पड़ने से इस्लाम खतरे में आ जायेगा वो झूठे हैं। रंगरेज दिनभर कपड़ा रंगता है तब उसका ईमान खतरे में नहीं आता। होली सबको मिलकर मनाना चाहिए। भारत की खूबसूरती एकता और मोहब्बत में है। नफरत फैलाने वालों को लोगों ने अब नजर अंदाज करना सीख लिया है।

सुभाषवादी नेता नजमा परवीन ने कहा कि सब भेद भुलाकर दिलों को मिलाने का त्योहार है होली। जो कहते हैं कि रंगों से ईमान खतरे में आ जायेगा, वो खून की होली खेलते हैं तब ईमान खतरे में नहीं आता ? सब मिलकर खेलें और मोहब्बत के रंग में रंग जाएं। किसी कट्टरपंथी कि परवाह न करें।

विशाल भारत संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ० राजीव श्रीगुरुजी ने कहा कि तेजाबी जुबान के नफरती बयानबाजों को काशी की मुस्लिम महिलाओं ने अच्छा सबक दिया है। मिलकर तीज त्योहार मनाने की संस्कृति तो सदियों से थी, वो तो कुछ लोगों ने त्योहारों को धर्म में बांट दिया। सूफियों ने होली खेली, सुल्तानों ने होली खेली, नबाबों ने खेली, तो ये कट्टरपंथी कौन होते हैं हमें होली खेलने से मना करने वाले। रिश्तों को मजबूत करने और दुश्मनी खत्म करने का त्योहार है होली। सब देशों को होली का आनन्द लेना चाहिए।

इस कार्यक्रम में नगीना बेगम, नाजिया, शमसुननिशा, तरन्नूम, रजिया, सरोज, प्रभावती, पार्वती, चमेली, लालती, पूनम, सुनीता, प्रियंका, रमता, गीता, सारिका, कलावती, रीता, मैना, चन्दा, किसुना, बिन्दू, धनेसरा, सुमन, ममता, किरण, अर्चना भारतवंशी, इली, खुशी, उजाला, दक्षिता आदि लोगों ने भाग लिया।

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