( मुफ्त की रेवड़ियां बांटना बंद करो। देश की स्थिति सुदृढ़ करो।)
“मुफ्त खोरी लोगों को कामचोर और देश को कमजोर बनाती है”
वाराणसी 11अप्रैल, देश-प्रदेश मे सत्ता पर काबिज होने के लिए जिस प्रकार से आज की राजनीति में वोटरों को लुभावने के लिए लोक-लुभावने वादे किए जा रहे हैं, आने वाले दिनों में आर्थिक दृष्टिकोण से उसके गंभीर परिणाम को देखते हुए सामाजिक संस्था सुबह-ए- बनारस क्लब के बैनर तले संस्था के अध्यक्ष मुकेश जायसवाल, एवं उपाध्यक्ष अनिल केसरी के नेतृत्व में लोक-लुभावने सपने दिखाने वाली पार्टियों पर अंकुश लगाने की मांग को लेकर मैदागीन चौराहे पर प्रदर्शन किया गया। उपरोक्त अवसर पर बोलते हुए संस्था के अध्यक्ष मुकेश जायसवाल,एवं उपाध्यक्ष अनिल केसरी ने कहा कि केवल शिक्षा, न्याय और इलाज के अलावा जनता को कुछ भी मुफ्त मत दो।
“मुफ्त खोरी लोगों को कामचोर और देश को कमजोर बनाती हैं” सत्ता हथियाने के लिए राजनीतिक दल जिस तरह से लोक-लुभावन योजनाओं की घोषणा करते हैं, उसके कारण न सिर्फ आम आदमी को दुष्परिणाम झेलने पड़ते हैं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था भी चौपट हो जाती है। आज श्रीलंका में जो कुछ हो रहा है, उसके लिए काफी हद तक ऐसे ही लोक-लुभावन योजनाएं जिम्मेदार हैं, जिसके वजह से उसे भारी आर्थिक नुकसान हुआ है। भारत के कुछ राज्य भी श्रीलंका के राह पर चल रहे हैं,वक्त रहते उन्हें ना रोका गया तो फिर भारत के वह राज्य भी श्रीलंका की तरह आर्थिक तंगी के शिकार हो जाएंगे। विधानसभा चुनाव में लोक-लुभावने वादों की झड़ी लगी है, यह पता किए बिना की राज्य की स्थिति क्या है? सत्ता पर काबिज होने के लिए बिना राज्य की स्थिति जाने लोक लुभावने वायदों का पिटारा खोल दिया जाता है। जबकि वह राज्य पहले से ही आर्थिक रूप से गंभीर स्थिति में होता है, ऐसे ही लोक- लुभावने वादों को पूरा करने के चक्कर में उन राज्यों की हालात श्रीलंका की तरह हो सकती है। बहुत ज्यादा फर्क नहीं है श्रीलंका और भारत के कुछ राज्यों की सरकार के आंकड़े बता रहे हैं, कि तमिलनाडु, पंजाब, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल,और राजस्थान पर ज्यादा कर्ज है। हमें नई रणनीति बनानी चाहिए,क्योंकि अगर इसे रोका नहीं गया तो एक दिन केंद्र पर भारी बोझ आएगा।
जिसका नुकसान पूरे भारत को होगा। कुछ राज्यों में सब कुछ मुफ्त की रेवीड़यां के तहत मुफ्त बांटने की होड़ मची है, और ऐसे में उन्हें रोका नहीं गया तो ऐसे हालात हो सकते हैं, जैसे श्रीलंका के हो चुके हैं, उत्तराखंड, पंजाब, दिल्ली जैसे अन्य कई राज्यों में जिस प्रकार से बिजली फ्री, पिछला बिल माफ, महिलाओं को हर महीने पेंशन तथा नाना प्रकार के प्रलोभन देने वाले घोषणा से राजस्व की हानि हो रही है, वह आने वाले दिनों में देश के लिए आर्थिक रूप से एक गंभीर चुनौती साबित होगा। जिसका खामियाजा देश की सारी जनता को भुगतना पड़ेगा। अंत में सभी वक्ताओं ने सरकार से अपील करते हुए मांग किया कि सरकार द्वारा गरीबों को दिए जाने वाला मुफ्त राशन का निर्णय स्वागत योग्य है। मगर यह जांच का विषय भी है, कि मुफ्त में बांटे गए राशन सही हाथ में पहुंच रहा है, या लाभान्वित व्यक्ति द्वारा उस राशन का धड़ल्ले के साथ बाजार में खरीद-फरोख्त हो रहा है। साथ ही साथ फ्री में बिजली देने के बजाय अगर महंगी बिजली का रेट कम कर दिया जाए तो उसका सभी वर्गों (मध्यम वर्गीय परिवार) को भी लाभ मिलेगा जो कि एक सराहनीय कदम होगा।
कार्यक्रम में मुख्य रूप से मुकेश जायसवाल, अनिल केसरी, नंदकुमार टोपी वाले, प्रदीप गुप्त, चंद्र शेखर चौधरी, सुमित सर्राफ, पारसनाथ केसरी, भईया लाल यादव, डॉ० मनोज यादव, पप्पू रस्तोगी, राजेश श्रीवास्तव, बी डी गुजराती, ललित गुजराती, चंद्रशेखर प्रसाद, राजेंद्र अग्रहरि, प्रदीप जायसवाल, राजेंद्र कुशवाहा, विजय वर्मा, सहित कई लोग शामिल थे।