भारत के लिए गंगा का योगदान अतुलनीय है , मैला न करें

वाराणसी। गंगा अपने प्राकृतिक सौंदर्य और औषधीय गुणों वाले जल के कारण भारत में हजारों-लाखों वर्षों से पूजी जा रही है। हजारों वर्षों से गंगा देश की प्यास बुझा रही है। यह कृषि, पर्यटन तथा उद्योगों के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देती है तथा अपने तट पर बसे शहरों की जलापूर्ति भी करती है। गंगा तट पर विकसित धार्मिक स्थल जैसे वाराणसी, प्रयाग, हरिद्वार व अन्य तीर्थ भारतीय सामाजिक व्यवस्था के विशेष अंग हैं। इसके ऊपर बने पुल, बांध और नदी परियोजनाएं भारत की बिजली, पानी और कृषि से संबंधित जरूरतों को पूरा करती हैं । दशाश्वमेध घाट पर गंगा की तलहटी से ढेरों कपड़े, पूजन सामग्री , पॉलिथीन इत्यादि निकालने के पश्चात नमामि गंगे काशी क्षेत्र के संयोजक राजेश शुक्ला ने कहा कि गंगा संरक्षण के लिए जनभागीदारी बहुत जरूरी है । बढ़ती जनसंख्या का दबाव झेल रही गंगा में रूढ़ीवादी परंपराओं का पालन करते हुए तमाम प्रदूषित सामग्रियों का विसर्जन करके हम स्वयं गंगा के साथ न्याय नहीं कर रहे हैं । कहा कि सरकार गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए कोई भी कसर छोड़ना नहीं चाहती है। नमामि गंगे प्लान के तहत गंगा में मल-जल जाने से रोकने के लिए एसटीपी का निर्माण समेत गंगा को अविरल और निर्मल करने के लिए सभी जतन कर रही है। जिसमें मोदी सरकार को तेजी से सफलता भी मिल रही है। यूपी की योगी सरकार की ओर से गंगा के इको सिस्टम को बरकरार रखने व गंगा को साफ़ रखने के लिए रिवर रांचिंग प्रक्रिया के तहत मछलियां का प्रवाह किया जा रहा है ।

लेकिन आज समय की मांग है कि मां गंगा के इस अतुल्य परोक्ष योगदान का भी मूल्यांकन किया जाए ताकि हमें उनकी अहमियत का पता चल सके । हमारे देश के व्यापार और वाणिज्य में गंगा द्वारा की जा रही मदद को हमें साफ तौर पर देखना होगा । हमें गंगा सहित माता की तरह हितकारिणी नदियों का सम्मान करना सीखना होगा । इसके लिए हमें स्वयं संकल्पबद्ध होना होगा और स्वयं से किया यह संकल्प हर हाल में निभाना होगा । जीवनदायिनी गंगा की निर्मलता और विशेषतः अविरलता पर ध्यान दिया जाना भारतीय राष्ट्रीय जीवन की मौलिक आवश्यकता है । गंगा बची रहेगी तभी हमारी संस्कृति , सभ्यता , अर्थव्यवस्था और हमारा समाज चिरस्थायी रहकर उन्नति कर सकता है ।

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