अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशाल भारत संस्थान का होली मिलन के साथ संगोष्ठी

वाराणसी। अब ये कहावत पुरानी हो गयी है कि महिलाएं ही महिलाओं की दुश्मन हैं। अब महिलाएं अपने अधिकारों को लेकर चिंतित हैं और दूसरी महिलाओं के लिये आवाज भी बुलंद कर रही हैं। अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर विशाल भारत संस्थान द्वारा लमही के सुभाष भवन में होली मिलन एवं भारतीय संस्कृति को अक्षुण रखने में महिलाओं का योगदान : तुर्को एवं मुगलों के हमले के बाद विषयक संगोष्ठी का आयोजन बुधवार को किया गया।

इस अवसर पर बोलते हुए मुस्लिम महिला फाउंडेशन की नेशनल सदर नाजनीन अंसारी ने कहा कि तुर्कों और मुगलों ने सबसे ज्यादा भारतीय संस्कृति पर हमला किया। उनके हमलों का अधिक कुप्रभाव महिलाओं पर पड़ा। भारतीय नाम की जगह अरबी नाम रखे जाने लगे। लेकिन महिलाओं ने धर्म बदलने के बाद भी अपने पूर्वजों की संस्कृति को नहीं छोड़ा। आज त्योहार पर बनने वाला भोजन वही है, चाहे होली पर चिप्स पापड़ गुझिया हो या दीपावली पर सूरन की सब्जी सबके यहां बनती है।

विशाल भारत संस्थान की राष्ट्रीय महासचिव अर्चना भारतवंशी ने कहा कि महिलाओं को धर्म जाती में बांटकर लोग उन पर अत्याचार करते हैं। महिलाओं पर हो रहे अत्याचार और हिंसा को लेकर रानी लक्ष्मी बाई दल और बेगम हजरतमहल दल का गठन किया जाएगा, जो महिलाओ के खिलाफ होने वाली हिंसा के खिलाफ महिलाओं की मदद करेगा और समाज में दबाव समूह के रूप में काम करेगा।

बीएचयू की इतिहास की सहायक प्रोफेसर डॉ० मृदुला जायसवाल ने कहा कि शिक्षा और संस्कृति ही महिलाओं को सुरक्षित वातावरण दे सकती है। घरों में संस्कार दें और महिलाओं का सम्मान करने की आदत डालें। हजारों हमलों के बाद भी गीतों से, भोजन से, पूजा और पहनावे से भारतीय संस्कृति को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में खामोशी से स्थानांतरित करती आ रही हैं। यह सत्य है कि महिलाओं की वजह से भारतीय संस्कृति बची है।

सुभाषवादी नेता दीदी नजमा परवीन ने कहा बेटियों को ताकतवर बनाइये जो अपने फैसले खुद ले सके। भारतीय संस्कृति ही महिलाओं को आजादी से जीने का अधिकार देता है।

विशाल भारत ब्रॉडकास्ट सर्विसेज की चेयरपर्सन खुशी रमन भारतवंशी ने कहा कि अपने ऊपर हो रहे जुल्म के खिलाफ खुद की आवाज बुलंद करें।

विशाल भारत संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ० राजीव श्रीगुरुजी ने कहा कि तुर्क मुगल अंग्रेज केवल भारत की संस्कृति को खत्म करने का उद्देश्य लेकर आये थे। नाम बदले, धर्म बदले और पूजा पद्धति बदल दिये, लेकिन महिलाओं ने संस्कृति के मामले में समझौता नहीं किया। शादी हो या निकाह, हल्दी को शुभ माना जाता है, हिन्दू हो या मुसलमान पाँवफेरी होती है, कोहबर बनता है, सुहाग की निशानी सिंदूर ही है। तो खान-पान, रहन-सहन में वो बदलाव नहीं कर पाए। महिलाओं ने भारतीय संस्कृति के विस्तार में अपनी बड़ी भूमिका निभाई है।

संचालन उजाला भारतवंशी ने एवं धन्यवाद पूनम श्रीवास्तव ने दिया। संगोष्ठी में गीता देवी, सरोज देवी, सुनीता श्रीवास्तव, उर्मिला देवी, किशुना देवी, मैना देवी, बिन्दू, चन्दा, प्रभावती, पार्वती, हीरामणि, रमता श्रीवास्तव, मीरा, किरन, सौम्या, राजकुमारी, बेचना, सवीता, गायत्री, सारीका, सीमा, रीता, अंजु, ममता, कलावती, इली भारतवंशी, दक्षिता भारतवंशी, शिखा भारतवंशी आदि लोगों ने भाग लिया।

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